मिश्रित तीर्थ और मणि शिवलिंग
भगवान शिव ने प्रसन्न होकर महर्षि दधीचि को एक मणि शिवलिंग दिया जिसका नाम ‘दधेश्चवरमहादेव’ पड़ा। दिल्ली में जब “सैयद शालाद महमूद गाँजी” जो कि औरंगजेब बादशाह का तत्कालीन सेनापति था, उसने विक्रम सम्वत् 1033 के माह बैसाख में नैमिसारणी, मिश्रित श्रृतिक और अयोध्या पर हमला किया तथा विभिन्न मन्दिरों को तोड़-फोड़ कर तहस-नहस कर दिया। उस समय श्री कृष्णानन्दगिरी जी दधिचि-आश्रम के महन्त थे। इस आश्रम में स्थापित दुर्लभ “स्पटीक शिवलिंग” को लेकर महन्त जी अपने शिष्यों सहित सुरक्षित स्थान की ओर चले गये परन्तु उनको आगरा में मुगल सेना द्वारा पकड़ लिया गया तब इस हमले में महन्त जी सहित उनके 1073 नागा-साधु शहीद हो गये। इसी दौरान महन्त जी ने अपने जीवित बचे हुऐ शिष्यों को इस दुर्लभ शिवलिंग को देकर इसकी पुनः स्थापना अपने विवेकानुसार उचित समय आने पर करने के लिए कहा। उन महन्त जी की समाधि दिल्ली के लालकिले में बनाई गई थी जो हर वर्ष कुछ दूरी तक खिसक रही है ऐसी मान्यता है कि जब यह समाधि किले की चारदीवारी के बाहर निकल जावेगी तब अविचारणीय विनाश होने की सम्भावना है। जब मुगलों को मन्दिरों को तोडने की गलती का अहसास हुआ तो उन्होनें इसकी भरपाई के लिये दधिचि आश्रम को 12 गाँवों की जमींदारी जिसके सारे दस्तावेज आज भी वर्तमान महन्त श्री देवदत्त गीरी जी के पास सुरक्षित है।
तब से आज तक यह शिवलिंग स्थापना की प्रतीक्षा में 47वें महन्त श्री देवगिरीजी महाराज के पास सुरक्षित रखा हुआ है। उत्तर प्रदेश में नैमिषारण्य से 13 किमी दूर मिश्रित तीर्थ (दधीचि आश्रम क्षेत्र) हमारी मातृभूमि कहलाती है। यह स्थान महर्षि दधीचि की तपोस्थली एवं पिप्पलाद ऋषि की जन्मस्थली-तपोभूमि है। हर दाधीच बंधु को जीवन में एक बार अवश्य इस पावन स्थल पर जाकर स्नान करना चाहिए एवं वहां की रज को अपने माथे पर लगाना चाहिए।